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Swati Vats

Abstract

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Swati Vats

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गरीबी और पैसा

गरीबी और पैसा

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गरीबी एक जगह खड़ी, जिन्दगी ताक रही यूं,

कि मरूस्थल की रेत से कोई, पानी छान रहा हो।


आँखो में उसकी कुछ मुझे, ऐसा दिख गया,

पैसा चीज़ क्या है जैसे, कदर जान गया हो।


खुश होने के जरिए भी, उसने ढूँढ लिए है,

जैसे रास्ता अलग है उसका, मान गया हो।


पैसा ही चाहिए था, कहके ऐसा वो गया,

मुसाफिर कोई मंजिल अपनी, पहचान गया हो।


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