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Swati Vats

Abstract

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Swati Vats

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पैसा और सोच

पैसा और सोच

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आज पैसा सबकी सोच में,भरा कुछ कदर

कैसे बनेगा सिर्फ़ सोचते हैं ,खुशनुमां उनका सफर |

पैसे के पीछे भागती वो, जिन्दगी निकल गई

जीने की चाह छोडकर, जीना चाहते मगर |


पैसे ने अपने लालच से ,सबको है मोह लिया

मार्ग भी सबने ,अपना -अपना ही जोह लिया |

जरूरत के थे मारे जो,उनकी चीख न सुनी

पैसेवालों से ही सबने ,अपने रिश्तों को टोह लिया |

        


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