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khushi kishore

Romance

4  

khushi kishore

Romance

विरह वेदना

विरह वेदना

1 min
22.4K


तुम मेरी जीवन का उगता हुआ सूरज हो

तुम मेरे दिन की शुरुआत के आगाज हो

तुम बिन जीवन में बस उदासी छाई है


प्रियतम तुम मेरे दिल का त्योहार हो

तुम मेरे एकात लम्हों का साथ हो

तुम मेरे सुर का साज हो


तुम मेरी आंखों की मुस्कान हो

मेरे चेहरे की हया का गुलाल हो

तुझसे प्रेम की ये कैसी सौगातें मिली है


भीड़ में भी में मन तन्हा अकेला है

बारिश की बूंदों में भी लगती तपन है

शाम की पुरवाई ने भी अग्न लगाई है


आन मिलो अब तो मुझसे सजना 

की तुझ बिन विरह वेदना छाई है

ये हवाएं इतनी बावरी क्यों हुई जा रही हैं


मेरी प्रियतम ने कोई पैगाम भेजा है शायद

ये जो इतनी दूरी है बस चंद दिनों की मजबूरी है

तेरे पास आ फिर बादल सा बरस जाऊंगा 


अब ना निर बहा, मोती से आंसू यूं ही ना लूटा

इस बार जो आऊंगा सिंदूर बन माथे पर सज जाऊंगा।


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