मेरे पापा
मेरे पापा
जमाने बदले दौर बदला
बदलते हुए वक्त के साथ
निखरता गया पिता का स्वरूप
एक शख्स ने समेटे लिए खुद में
अनेकों रूप ।
क्या हैं मेरी जिंदगी में उनका स्वरूप ?
मेरे व्यक्तित्व का आधार है मेरे पापा ।
कोशिश करो करती रहो
है मुमकिन सब कुछ यहाँ
हमेशा हौसला बढ़ाते हुए
हर सफर में मेरे साथ है मेरे पापा ।
जब कभी थम जाती हूं
चलते चलते यूं ही रूक जाती हूं
सर्द मौसम की गुनगुनी धूप की तरह
मेरे आस पास है मेरे पापा ।
मेरे चेहरे का ओज
मेरा आत्मविश्वास
मेरी मुस्कुराहट
मेरे सिद्धांत
बारीकी से मुझे गढ़ने वाले
शिल्पकार है मेरे पापा ।
जब मैं होती हूं उनके पास
निफिक्र निश्चित हो जाती हूं
पापा की छांव में उन्मुक्त हो
खिलखिलाती हूं।
मेरे बचपन को अपनी बांहों में समेटे
जादूगर है मेरे पापा।
चाहे रहूं दुनिया के किसी कोने में
मेरे दिल के पास हैं मेरे पापा
मेरा गुरूर मेरे अभिमान हैं मेरे पापा।