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khushi kishore

Romance

4  

khushi kishore

Romance

खुद सा हो जाना!

खुद सा हो जाना!

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शब्द कब पर्याप्त हुए हैं 

भावनाओं की अभिव्यक्ति में

क्या मुमकिन हो पाया है

हर किसी का शिव हो जाना 

मन है माना

आकाश सा

अंतहीन

विशाल मगर

कहो

कब है आसान

गिरहों का बस

खुल जाना 

लम्हे लम्हों में

फिसल रही

कतरा कतरा

जो जिन्दगी

क्या

तुम से हो पायेगा?

छोटा सा मोल

चुका पाना

शब्द जो ना

थिरके लबों पर

चुन लेना

खामोशियां मगर

सांसों की मद्धम 

लय पर

रख लेना

गीत कोई अनजाना

कुछ सुन लेना

 कुछ कह देना

 तुम आंखों की भाषा से

दिल में लिए बवंडर

 सुनो! 

डगमग ना हो जाना

हैं माना

 थोड़ी कठिन डगर 

संकरी सी पथरीली भी

चाहे हो जैसी

 राह है!

 कई कई मोड़ मुड़ जायेगी 

आए ना

 जब तक मनचाही डगर

 बस चलते ही रहना तुम

आसमान में भी तो देखो

 रंग कई बदलते हैं

घुमड़ते हैं बादल

 कभी इंद्रधनुष भी बनते है

दबी दबी और घुट्टी सी

 जाने कितनी आवाजों में

इक जरा सी

 कोशिश तुम करना

 बस खुद सा हो जाना।।



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