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Vimla Jain

Action Children

4.7  

Vimla Jain

Action Children

वह कागज की कश्ती

वह कागज की कश्ती

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371


वह कागज की कश्ती 

चौक में भरे पानी का किनारा।

वह बचपन की मस्ती

वह साथ भैया तुम्हारा

बहुत याद आता है ।


बहुत याद आता है।

हर समय तुम्हारा जीत जाना 

बहुत याद आता है।

मेरा तुमसे रूठ जाना बहुत याद आता है।

लगता था मुझे हमेशा ऐसा तुम मेरी नाव खराब बनाते हो

तुम्हारी अच्छी बनाते हो।

फिर जब तुमने तुम्हारी नाव देनी मुझको करी चालू।

तब समझ में आया कि खराबी नाव में नहीं चलाने वाले में है।

वहीं से सीखा हमने जीवन का पाठ यह प्यारा

जो तुमने हमको सिखाया था साथ।

और चलाई जीवन की नैया बराबर।

और आखिर में तुमसे मिलना याद है

जब डाइनिंग टेबल पर बैठकर हमने बनाई थी

मैंने कागज की डलिया और तुमने कागज की नाव।

कितनी बातें हमने उस समय करी थी साथ ।

जब तुम थे अपने पोते पोती के साथ।

क्या सुंदर नजारा था।

बचपन के किस्से किए थे साझा।

हमने हंस हंस के साथ

ना सोचा था कि वापस यह मिलेगा ना कभी दोबारा तुम्हारा साथ।

कागज की कश्ती, बचपन की मस्ती 

कोई लौटा दे हमको फिर से  वो मस्ती।



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