एक प्यारा सा अनजान सफर
एक प्यारा सा अनजान सफर
बात पुरानी है।
कहते हम एक कहानी है।
अनजान सफर की यह कहानी है
जिसने कर दिया हमको जाना पहचाना है।
और बना दिया यहां का स्थाई रहवासी है।
राजस्थान के प्रसिद्ध शहर से गुजरात के अनजान गांव तक का सफर बहुत अंजाना सफर था हमारे लिए।
मगर मन में एक विश्वास लिए।
अपनी दो छोटी-छोटी बेटियों के साथ चल दिए,
हम इस अनजान सफर की ओर, जब हम गुजरात के तिलकवाड़ा गांव में उतरे।
छोटा सा कस्बा सोचा नहीं था कभी हम यहां भी रह पाएंगे।
मगर उस गांव में हमको इतना अच्छा अपनाया इतनी प्रसिद्धि दिलवाई।
नई शुरुआत करवाई।
जिसको हम कभी भूल नहीं सकते।
अपने अपनी पहली पैथोलॉजी लैब भी वही चालू करी थी।
लोगों को स्वास्थ्य सुख सुविधाएं भी वहां बहुत हमने दी थी।
जो सुविधा वहां नहीं थी बंद अस्पताल को चालू करके उनको भी हमने खड़ा किया था।
अंतरिम8 गांवों में हमने कैंप लगाए थे।
वह गांव नाम से नहीं डिग्री से हमारे पति को पहचानने लगा था।
एमडी साहब के नाम से वह जानने लगा था।
बहुत ही सुंदर नर्मदा किनारे बसा हुआ वह गांव हमारे दिल में आज भी बसता है। वहां के लोगों के प्यार मोहब्बत को आज भी याद करता है।
जिस दिन हमने वह गांव छोड़ा पूरा गांव हमको विदा करने आया था।
गांव के 20 लड़के एक ट्रक में हमारा सामान भरके हमारे साथ बड़ौदा आए थे।
वह अनजान सफर हमको जान से भी प्यारा हो गया था।
जहां हमने बहुत प्यार पाया।
उन लोगों से आज तक भी हमारा नाता है।
अनजान सफर हमारा जान से प्यारा सफ़र बन गया।
जहां बहुत प्यारे दोस्त मिले। बहुत लोग मिले।
कुछ दुश्मन भी मिले जो बाद में दोस्त बन गए ।
ऐसा प्यारा वह अनजाना सफर हमारा प्यारा जाना पहचाना सफर बन गया।