अनबनी बरसात जो दे गई मेरे दिल का सुकून
अनबनी बरसात जो दे गई मेरे दिल का सुकून
बारिश का मौसम नहीं था फिर भी कल
बादल होके अनबनी बरसात हो गई।
धीमी धीमी अनबनी बरसात मेरी छत पर यह अनबनी बरसात की धीमी-धीमी छाप,
सूखे पत्तों पर गिरती है एक नई आस की बूँद।
धरती की प्यासी मिट्टी ने ओढ़ ली है शीतल चादर,
बिखेर रही है खुशबू, सावन की मधुर सौगात।
आसमान की ग्रे परतों में छिपी है रोशनी,
कभी-कभी चमक उठती है बिजली की फ्लैश।
टपकते हैं मोती, बूँदों की राह में,
पेड़ों के पत्तों से झर-झर करते हुए। मानो पेड़ के पत्ते की बरसात कर रहे हैं।
चौक में भाग कर भीगने का मजा ही कुछ अलग है।
और जब खिड़की से देखूं जब यह नज़ारा, दिल को सुकून मिलता है,
घोर गर्मी के बाद हुई इस बरसात से मन होता है भीगा।
बरसात की ये अनबनी बूँदें,
बाँध देती हैं मुझे अपनी अनोखी रीत में।
मिट्टी की वह सोंधी खुशबू और
इस अनबनी बरसात का जो संगीत बजता,
बूँदों का ताल, हवाओं का हाल,
मिल जुलकर बनाते हैं एक मधुर मिलन,
जैसे धरती और आसमान का प्यारा विवाह।
सोचूं तो सही, कैसे यह बरसात,
मेरी जिंदगी में बिखेरती है खुशियाँ अपरम्पार।
अनबनी हो कर भी कितनी खूबसूरत है,
जैसे जीवन की कठिनाइयों में छिपा सुखद संसार।
चातक सी बरसात की राह देखते लोगों को कैसा यह सुकून पहुंच जाती है।
सबका मन और दिल ठंडा हो जाता है।
और बरसात हो जाए ऐसा दिल चाहता है।
बरखा रानी जरा जम के बरसो
धरती पुरी पानी से सरोबार हो जाए।
खेत खलियान को पूरा पानी मिल जाए।
लोगों को पानी की कमी ना सताए बरखा रानी जरा जमके बरसो
सबका मन खुश हो जाए।
ऐसा मेरा दिल चाहता है