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उतर आया

उतर आया

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जब इश़क ऐ ख़ुदा दिल मे उतर आया

फिर क़तरा क़तरा सवाब उतर आया।


महकता है तो समझा गया है गुल वरना

इस गुलिस्तां मे कौन सा रंग नहीं उतर आया।


सबा को दे दिया जब आशियाँ गुलशन में

हर गुल ख़ुदा बनके उतर आया।


इस शहर की फ़िज़ा मे उम्मीद है या है शराब

मैं बहक कर फिर दुआ पे उतर आया।


तमाम उमर महरुम रहा नेमतों से ज़मीन

कुछ तो दे ,ले दो गज़ उतर आया।


सवाल लाता है अपने साथ जब मजबूरी

तब हौंसले पे मेरा ऐतिक़ाद उतर आया।


ये किसका ख़्वाब था, आँखों मे बस गया था कभी

जो हर एक रूह में एक जिस़्म उतर आया।


न मिल सकी कभी दुनिया की नेमतें मुझे

जरा क्या झोली भरी और ग़रूर उतर आया।


जावेदा हो गयी ये दुनिया उनकी रहमत से

ग़ारे हिरा मे जब एक नूर उतर आया।।


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