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Navya Agrawal

Romance Inspirational

4  

Navya Agrawal

Romance Inspirational

उम्र का वो आखिरी पड़ाव

उम्र का वो आखिरी पड़ाव

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जिंदगी की भागदौड़ में, 

अपनों का साथ था छूट गया।

उम्र के आखिरी पड़ाव पर, 

जीवनसाथी भी था रूठ गया।।


बुढ़ापे की जिस छड़ी को, 

मोह माया ने दूर किया।

टूटा चश्मा, कांपते हाथ, 

हालातों ने भी चूर किया।।


डूबे थे तन्हाई में दो दिल, 

अपना कोई साथ न था।

अकेले थे जीवनपथ पर, 

हमदम कोई पास न था।।


बढ़े वही लड़खड़ाते कदम, 

सहारा अपना ढूंढने को।

दर्द से दर्द को मिलाकर, 

खुशी से नाता जोड़ने को।।


जाते थे हर रोज दो अजनबी, 

महकते एक बगीचे में।

दो दिल थे उदास और उखड़े, 

रहते थे खिंचे खिंचे से।।


मिली जब निगाहों से निगाहें, 

छाप दिल पर छोड़ गई।

आंखों ही आंखों में, 

ना जाने बातें वो कितनी कह गई।।


हुई मुलाकातें और बातें बढ़ी, 

दोनों में दूरियां थी घटी।

वृद्धावस्था में शादी, 

समाज को यह बात कहां थी जची।।


ठुकरा कर

सारे समाज और 

इन झूठे रीति रिवाजों को।

थामा था एक दूजे का हाथ, 

बाकि की उम्र बिताने को।।


बनते थे आंखें वो दूसरे की,

चश्मा जब टूट जाता था।

बनते थे लाठी दूसरे की, 

सहारा जब छूट जाता था।।


आंखों से कुछ सूझता न था, 

देह में बची अब जान न थी।

खड़े थे फिर भी हाथों को थामे, 

जिंदगी अब वीरान न थी।।


नही थी फिक्र उन्हे दुनियादारी की, 

ना ही कोई मतलब था।

एक दूजे के ख्वाबों को सजाना, 

बस इतना ही मकसद था।।


करते थे हर ख्वाइश पूरी, 

मानो दिन आखिरी जिंदगी का हो।

जीते थे हर पल को खुलकर, 

पल आखिरी बंदिगी का हो।।


छोड़ दिया था जिन बच्चों ने, 

पाल पोश जिन्हे बड़ा किया।

तोड़ के नाते उन रिश्तों से, 

अपना आशियां था खड़ा किया।।


देखी न थी उम्र प्रेम ने, 

बांध ना पाया जिन्हे कोई बंधन।

अथाह प्रेम सागर में डूबे, 

हुआ दो दिलों का ऐसा संगम।


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