उड़ने दो
उड़ने दो
उड़ने दो मुझे अपने मन का
तब न कोई मंजिल पाएगी
बांधकर रखोगे तो कुछ नहीं मिले
सब कुछ छूट जायेगा ।।
आसमां तक उड़ना है मुझे
कुछ पाऊंगा नहीं तो
सब कुछ जान जाऊंगा
आसमां में क्या है।।
मत रोको मुझे बांधो मत
उड़ने दो मुझे मन का करने दो
फिर दिखाऊंगा ये सिक्का कैसा
मुझे जी भर के उड़ने दो।।
आंधी मन की बहती है
सागर मन का बहता है
तब रत्नों को पाता है
और सबको बहुत कुछ देता है।।