उड़ चल पंछी पार गगन के
उड़ चल पंछी पार गगन के
आ जा संग मधुर पवन के
भंवरे रहते संग चमन के
क्यूँ स्थिर है क्यूँ निराश
उड़ चल पंछी पार गगन के
चलती नदियां चलती धारें
चलते नित्य नभ के प्यारे
धरती, चंदा, मंगल, तारे
उमड़ते सागर तुझे पुकारें
सीख ले चलना मंद पवन से।
उड़ चल पंछी पार गगन के।।
भाँति-भांति के फूल है खिलते
पर-हित हेतु नहीं ठहरते
तरुवर-सरवर तत्पर रहते
क्षण-क्षण पल-पल आगे बढ़ते
करले परहित तन-मन-धन से।
उड़ चल पंछी पार गगन के।।
कौन है स्थिर मुझे बतादे
कोई प्राणी मुझे दिखादे
तन-मन चाहे भेंट चढादे
काल गति को रोक दिखादे
सीख नया तू कुछ धड़कन से।
उड़ चल पंछी पार गगन के ।।
कहता है ये समय सुहाना
स्थिरपन ना मन में लाना
जीवन का है नहीं ठिकाना
गा ले कुछ तो नया तराना
"अशोक" अर्पण कर जीवन के।
उड़ चल पंछी पार गगन के।।
