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Ashok Kumar Gound

Children Drama

2.5  

Ashok Kumar Gound

Children Drama

काश ! बचपन लौट आता

काश ! बचपन लौट आता

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फिर बनाते मिट्टी के घर,

दिन भर घूमते इधर उधर।


ना खाने की चिंता,

ना सोने का फ़िकर।


फिर वो पीली पतंग,

नीले आकाश में उड़ाता।

काश ! बचपन लौट आता।


बगीचे में आती-पाती,

पुआल में घुसकर चोर पुलिस।


माचिस के डिबिया की रेलगाड़ी,

आम के पत्तों को खाकर पान बताना।


जेब में पुराने ताश के पत्ते,

वो गिल्ली डंडा फिर उठाता।

काश ! बचपन लौट आता।


वो गाँव की गलियों से जाना,

स्कूल में भी मारपीट।


मास्टर जी का भी नाम बदल देना,

दूसरे से होमवर्क भी करवाता।

काश ! बचपन लौट आता।


भुकभुकाती ढिबरी में पढ़ना,

दादी माँ से किस्से सुनना।


रात में भी फहियाना,

सुबह देरी से उठवाता।

काश ! बचपन लौट आता।


गाँव में मेला देखने जाना,

गुब्बारे की जिद करना।


सिटी बजाना नकली बंदूक चलाना,

दस रुपये में मेला देख पाता।

काश ! बचपन लौट आता।


बड़े भाई का डर,

बड़ी बहन की मार।


वो खेत की मिट्टी में लोटना,

कुड़ी कूदना कबड्डी खेलना।


किताबो में पैसे छुपाकर रखना,

वो चूरन खाकर जीभ दिखाता।

काश ! बचपन लौट आता।


बचपन तो बचपन है भाई,

वह एक स्वर्णिम युग।


वापस कर दे कोई मेरा बचपन,

“अशोक” बचपन याद आता।

काश ! बचपन लौट आता।


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