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Praveen Kumar Saini "Shiv"

Classics Inspirational Children

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Praveen Kumar Saini "Shiv"

Classics Inspirational Children

बचपन वाले दिन

बचपन वाले दिन

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बचपन के खेल खिलोने बड़े निराले थे

तुतलाते अबोध शिशु हम कंहा सुनने वाले थे 

मम्मी कहती नहाले विद्यालय सब जाने वाले थे 

गुरु का ज्ञान गणित के पहाडे़ कंहा समझ आने वाले थे

पड़ोस वाली संजू कि गुड़िया को, 

अंजू का दुल्हा आज व्याह के ले जाने वाले थे 


कल हुआ था सगाई का समारोह 

सब आज अपनी जेब खर्ची से मिठाई लाने वाले थे

मिनूडी को कहा था साड़ी वह लायेगी दुल्हन की 

नरेंद्र कोट पेंट दुल्हे के कपड़े और कुछ बराती स्कूल के दोस्त लाने वाले थे 

शगुन की बात निराली थी, 

शगुन में गाड़ी ओर गहने दुल्हे को मिलने वाले थे


टायर से बनती थी गाड़ी और माचिस की डब्बी से बनने वाले टीवी के जलवे निराले थे 

एक घर से दुसरे घर जाने के मजे ही जबरदस्त वाले थे

पड़ोसी के घर भी अपनापन और खाने को फल और कितने खाने आसानी से मिलने वाले थे 

ना लड़की का फर्क ना लड़के का सब एक जैसे होने वाले थे


वो गिल्ली डंडा और बेट बोल का खेल, कभी होली में

कबड्डी खेलना और लुका छुपी के खेल निराले होने वाले थे

वह निश्छलता, वह अपनापन, सब खेल खिलोने बड़े होते होते बदलने वाले थे

जिसका हाथ पकड़ कर घुमे वह अब पास खड़े होने से भी दुनिया के डर से डरने वाले थे 

क्यों हो गये बड़े यार वह बचपन वाले दिन कितने सुंदर और मतवाले थे


आज बोल जाये लड़का लड़की से या शादी शुदा औरत मर्द से तो वह उसकी बीवी हो जाती है 

मर्द करता सबसे बात फिर मर्द पर क्यों नहीं यह दोगली जनता सवाल उठाती है 

सच है मेरी जान बचपन के दिन पवित्र होते थे

भगवान भी बड़ा ना करता इंसान को जो पता होता बड़े हो कर ये दोगले होने वाले थे

चलो वापस बन जाते हैं छोटे जो दिन रात मस्ती वाले थे।


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