आम का पेड़ !
आम का पेड़ !
" प्राकृति का विनाश ही मानवता का विनाश है। यह एक सत्यता है जिसे हमें स्वीकार करना चाहिए। प्रकृति हमारे अस्तित्व का मूल है, हमारी संवेदनशीलता का स्रोत है और हमारे सभी जीवनों के लिए आवश्यक तत्त्वों की प्रदाता है। इसलिए, जब हम प्रकृति को नष्ट करते हैं, तो हम अपने आप को भी नष्ट कर रहे हैं। "
आइए हम सब मिलकर आज एक "प्रतिज्ञा" लेते है , की हम अपने जीवन काल में कम से कम ऐक पेड़ जरूर लगाएंगे ।
ये कहानी हैं, आम के पेड़ की जो मेरे दादाजी जी ने लगाया था।
आम का पेड़ हरियाली से सजा,
सुंदरता से भरा, मनोहारी अपार।
उठ जाता है ऊँचा, बादलों के पार,
आम का पेड़ बन जाता है सबका प्यार।
जब आती है गर्मी, तपती धूप नीरी,
तो खिल जाता है आम, मिठास से भरी।
बच्चों को राहत देता, ठंडी-ठंडी चटनी,
आम का पेड़ है जीवन का मधुवनी।
पंख लगा के बच्चों का आम खाने को,
ऊँचाई पर चढ़ जाते, छुआरों को खीलने को।
गर्मी के दिनों में ये देता ठंडा एहसास,
आम का पेड़ हर किसी को करता संतुष्ट।
आम की खुशबू चढ़ती है मनोहारी खाटों से,
सबको मोह लेता है खिलोनों के बाजारों से।
आम का पेड़ हमेशा फलों से भरा रहे,
हर मन में आम की मिठास का आभास रहे।
जब खेलों में थक जाए, दिनों की गर्मी सह,
तो खाएं आम को, रहें स्वस्थ हमेशा।
आम का पेड़ नए अभियांत्रिकों का संगठन,
जगमगाता है आम की सुंदर यात्राओं से भरा इतिहास।
मेरा आम का पेड़, तू है सबकी आस,
फलों की बागीचा में तू ही राजकुमारी सारी बातों की।
आम का पेड़ तू है प्रकृति का उपहार,
मेरे दिल में बसी है तेरी ख़ुशबू सदैव प्यार।
