ऐ वक़्त अब खुद को संभाल लूंगा
ऐ वक़्त अब खुद को संभाल लूंगा
ऐ वक़्त अब खुद को संभाल लूँगा
तेरी मेहरबानियों से नफ़रत है मुझे
लगे ठोकर ही तो क्या टूटेंगे नहीं
गिरेंगे, उठेंगे, संभलेंगे उफ्फ नही कहेंगें
न लेंगे अब सहारे, सहारो को टाल दूंगा
ऐ वक़्त अब खुद को संभाल लूँगा
तू भी दिखा दिया गिरगिट का रंग
बदल गया तू भी जमानो के संग
तू तो पापी, अन्यायी, निष्ठुर है रे
निर्बल, असहाय, मजबूरों से दूर है रे
तेरी कसौटी अब तुझपे ही डाल दूँगा
ऐ वक़्त अब खुद को संभाल लूँगा
तू देना भी जानता है और लेना भी
बनिये की चाल क्यों चलता है
जब लेना ही है तो मेहरबानी क्यों
ऐसी मेहरबानी क्यों करता है
तुझसे सारी उम्मीदें टाल लूँगा
ऐ वक़्त अब खुद को संभाल लूँगा
जब तक है अंतिम साँसे अंतिम रक्त
न रहेगा किसी से उम्मीद ऐ वक़्त
भरेंगे हौसला खुद के जहन में
उड़ेंगे, बिखरेंगे खुद के गगन में
दर्द, पीड़ा की अनोखी ढाल लूँगा
ऐ वक़्त अब खुद को संभाल लूँगा
वक़्त ने मुझे समझा दिया
तुझे खुद पर भरोसा करना है
न तू किसी का है, न तेरा है कोई
अपनी कर्माग्नि में ही जलना है
“अशोक” अश्रु मोती को संभाल लूँगा
ऐ वक़्त अब खुद को संभाल लूँगा