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Ashok Kumar Gound

Abstract

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Ashok Kumar Gound

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सावन में सजनिया आ जाना

सावन में सजनिया आ जाना

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अब ना कटत है तुम बिन रतिया,

तड़पावत है सांझ सवतिया,

बन बरखा पनिया आ जाना,

सावन में सजनिया आ जाना।


अंगना से झाँकत नैना बरसे

दरद की रतिया चकवा समझे

बन शीत बयरिया आ जाना,

सावन में सजनिया आ जाना।


झूला जोहत है तुमको,

तरुवर छहियां जोहत है,

जिन अंजुली से सींच रही थी तुलसी,

उन अंजुली को तुलसी जोहत है,

नीम पतैया के छाया बन,

पंछिन के आस मिटा जाना,

सावन में सजनिया आ जाना।


रात अंधरिया बादर करिया

मनवा के बहकावत है,

बादर निगोड़ी झुकि-झुकि बरसै।

चम-चम बिजली चमकावत है।

बाट देखत सजनी तुम्हरी,

सजना से नैन लड़ा जाना।

सावन में सजनिया आ जाना।


चहुँ दिशि भया सब गिला-गीला,

तरुवर गीले पत्ते गीले,

वसन गीले, बदन सब गीला,

नैना गीले, यादें गीले,

"अशोक" बाल के छोरों से,

गीले बूंद टपका जाना।

सावन में सजनिया आ जाना।


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