खरगोश और कछुआ
खरगोश और कछुआ
सुनी तो होगी हम सब ने कहानी कछुआ और खरगोश प्यारी
पाठ बहुत बड़ा सिखाया उन दोनों की रफ्तार ने है सबको हैरानी
बहस छिड़ी थी उन दोनों में चलो लगाते आज एक दांव एक मुँहजवानी
वही सिकंदर जो जीता यदि हार हुई तो सारी उम्र करेगा गुलामी....!!
हामी भरी दोनों ने एक साथ करी आगे बढ़ने की तैयारी
शक्तियों को अपनी किया इकट्ठा और हो जाये दौड़ने की तैयारी
बढ़ा रहे कदम दोनों अपनी गति अपनी लगा कर के सारी
मगर खरगोश और कछुए की गति में अंतर है बड़ा ही भारी....!!
हौसला बढ़ रहा दोनों का कछुए की गति से खरगोश की गति अब है तेजधारी
छूटा साथ दोनों का हुआ ओझल नजर से कछुआ आई खरगोश बारी
ना आए नजर दूर तक कोई अब एक युक्ति सूझी उसको भारी
करूं विश्राम कुछ देर रुक कर यहां मिटा लूं मैं थकान सारी....!!
लगा मूंदने जब पलकें आ गया है आगोश में गहरी नींद के भारी
रफ्तार मैं अपनी बड़ा आ रहा कछुआ मगन होकर जीत की चाह में सारी
खड़ा हो गया है आकर वह अब खरगोश के आगे जीत का दावेदारी
भरा है जोश अंदर फिर अपने करी आगे बढ़ने की तैयारी....!!
रेंगता पहुंच गया जहां मंजिल थी जिस छोर पर उसकी प्यारी
आंख खुली खरगोश की तो होश उड़ गए उसके देख कछुए के चिन्ह हुई हैरानी
लगाई दौड़ जोर से आगे बढ़ने की उसने कर डाली तैयारी
समझ आ गया उसको चूक हुई है उससे भारी....!!
कैसे पाई जाए जीवन में सफलता आ गया समझ उसको इक बारी
मेहनत है मूल सफलता का आलस है हार की तैयारी
गवा दिया मौका उसने था जो जीत का दावेदारी
जीत तभी संभव है इस दुनिया में लगा दो जान की सारी बाजी....!
