काल रात्रि का संदेश
काल रात्रि का संदेश
आज सहमा नक्षत्र,
कापें दिग्गज, दहला अंबर,
शिव ने तांडव करने फिर एक बार
कालरात्रि का आहवाँन किया बोले,
आज धरती पर तुमको जाना होगा
कोरोना ने बहुत नर संहार किया
अब उसका संहार तुम्हें करना होगा,
जैसे महिषासुर का वध कर डाला
वैसे ही कोरोना की बलि चढ़ानी होगी
कोरोना का धरती पर अब
बाकी कोई निशाँ ना बचे
भले धरा के और नभ के बीच साबित कुछ ना बचे,
सुन आदेश नीलकंठ का बनी देवी रण चंडिका
काल केश बिखराए नथुनों से ज्वाला फड़के
शीशों की गुथी माला धारण करके
चली अपना खड़ग खपर लेने
जिह्वा बनी आज लाल अंगारा
देख रूप सिहर उठा बृह्मांड सारा
बन प्रभंजन मेघदामिनि तोड़ फोड़ उत्पात मचाती
खंडहर हो जाता महल
काल बनकर माता जिधर से गुजरती
जर्रा जर्रा उगल रहा अग्नि की ज्वाला
देख मानव कांप रहा
कैसे रुकेगी विध्वंस की माला
इतने मे देवी से हुआ सामना
देख रण चंडीके रूप देवी का
मानव ने श्राध्दा से शीश झुकाया
क्रोधग्नि मे जलती देवी बोली
कहाँ छुपा क्षुद्र कोरोना
आज हवन कुंड मे आहुति उसकी चढ़ाऊँगी
नष्ट उसे तो होना ही है
भले भस्म मै भी हो जाऊंगी
मेरा वार ना खाली जाता
तीनों लोक मुझसे घबराता
शीश झुकाए ही मानव बोला
सत्य कहा माता आपने इसमे कोई दोष नही
आपकी अनंत शक्ति पर मुझे कोई रोष नही
पर ये कलियुग है माँ
आपका शस्त्र काम ना आता
क्योंकि कोरोना कही नज़र ना आता
ये विज्ञान का युद्ध मशीन का दावपेच है माँ
बस तुम्हारा आशीष ही शस्त्र बना है माँ
श्वेत वस्त्रों में देवदुत डटे हुए है अनवरत
जीवन दान का हाथों मे औजार लिए
खाकी वर्दी मे डटे हुए है
सारे रक्षक बनकर
ये अनोखा समर है माता
जन जन आज ख़ुद बना योध्दा
लौट गई कालरात्रि विजयी भव का वरदान देकर।