हौसलों की उड़ान
हौसलों की उड़ान
आओ सुनाऊं एक नन्नी चिड़ियां के हौसलों के उड़ान की कहानी,
एक नन्नी सी चुलबुल पर बेहद ज़िद्दी सी,
प्यारी सी पर बेहद गुस्सेल सी और नकछड़ी,
उसका प्यारा सा परिवार बहुत सुखी संसार था,
उसकी जिंदगी में एक तूफ़ान उमड़ पड़ा,
उस तूफ़ान में पिता का साया बच्चों पर से उठ गया,
उस नादान सी उम्र में वो नन्नी चिड़ियां अपनी जिंदगी से अनजान थी,
खेलने कूदने की उम्र में, कंधो पर जिम्मेदारी का बोझ आ खड़ा हुआ,
शरारत करने की उम्र में जिंदगी की परीक्षा शुरू हुई,
बचपन में बचपने को छोड़ कर, जिम्मेदार और समझदार बनने की शिक्षा शुरू हुई,
उस बचपने में दाल, आटा, सब्जी आदि सामान लाने के लिए 5-7 किलो का थैला हाथों में थमा दिया जाता था,
मुंह सूख जाता, पैर भी दर्द करते, हाथों में भी छाले पड़ जाते पर मुंह से उफ तक नहीं निकलती थी,
स्कूल में बच्चे जानबूझ कर पूछा करते थे, तेरे पापा कहाँ है ?
जोर जोर से हंसते और कहते तेरे पापा तो मर गए,
आंखों से आंसू निकल आते, और याद बड़ी आती,
जैसे जैसे बड़े हुए, खुली आंखो से जो देखे थे सपने वो भी चकना - चूर हुए,
सब कहते तुम कुछ नहीं कर सकते,
अपनो ने भी वादा तोड़ा, झूठे सपनों का संसार बुना,
वक्त आने पर सब ने मुंह मोड़ा, गैर तो गैर अपनो ने भी साथ छोड़ा,
बुरी तरीके से टूट चुकी थी वो चिड़ियां, एक कमरे में बंद होकर ना जाने कितने दिनों तक रोई थी वो चिड़ियां,
खुद की जेब में ना था 1 पैसा ना अठनी,
बिन पैसे के भी जिंदगी में सबसे अलग कुछ करने की ठानी थी,
अपने दम पर कुछ कर दिखाएगी, किसी के आगे हाथ नही फैलाएगी,
मेहनत करती गिरती है, संभलती हैं लेकिन हार नहीं मानती हैं,
टूटे बिखरे सपनों को जोड़ती, दिल में नई उम्मीदों का हौसला लेकर वो चल पड़ी,
मेहनत करती वो दिन रात, धूप और बारिश में भी नही रुकती,
ना डरती, ना घबराती, अपनी धुन में मस्त रहती,
खुद पढ़ती, जॉब भी करती, अपना खुद का खर्च भी उठती हैं,
वो चिड़ियां पंख फैलाए खुले आसमान में हौसलों की उड़ान भरती,
अपने सपनों की राह में हैं अभी एक रोज शिखर तक भी पहुंच जाएगी,
मेहनत और लगन से अपनी मंजिल जरूर पाएगी।