कलयुग का रावण
कलयुग का रावण
बंद करो रावण के पुतले जलाना,
जरूरी है कलयुग के रावण को मिटाना,
कलयुग में मर्यादा पुरुषोत्तम राम तो सभी बने फिरते हैं,
दशहरे के दिन रावण दहन बड़ी शान से किया करते हैं,
क्या कभी अपने मन के कोने में बैठे अहंकार रूपी,
कुदृष्टि रूपी, भेदभाव रूपी, क्रोध रूपी रावण का दहन किया करते हैं,
अपने आप को राम कहना बंद करो,
राम बनकर रावण के पुतले जलाना बंद करो,
सबसे पहले अपने अंदर के रावण का दहन करो,
कलयुग का रावण बैठा है,
शहर - शहर, गांव - गांव के हर एक कोने में,
जो मिलते है हर रोज गली - गली , हर मोहल्ले के चौराहे के नुक्कड़ में,
कुदृष्टि की निगाह लगाए सीता का हरण करने रावण,
द्रौपदी का चीरहरण करने दुर्योधन घूम रहे हैं दुनिया के हर एक कोने में,
निर्भया, उन्नाव की बेटी, ना जाने इन बेटियों जैसी
कितनी मासूमों के साथ हर रोज दुष्कर्म किया जाता हैं,
सीता को बचाने श्री राम आए थे,
द्रौपदी को बचाने श्री कृष्ण आए थे,
कलयुग के रावण और दुर्योधन को मिटाने ना राम ना कृष्ण आएंगे,
उठो नारी शक्ति अपनी आत्मरक्षा के खातिर,
ऐसे दुष्ट जनों का हमें स्वयं ही नरसंहार करना होगा,
कलयुग के रावण और दुर्योधन को मिटाने नारी शक्ति को स्वयं काली रूप धारण करना होगा।