कलमकार और कलाकार
कलमकार और कलाकार
इस समाज में हम जैसे लेखक और लेखिका का आदर कहां,
हमारी लिखी कविताओं का मोल कहां,
हम जैसे लाखों कवियों का मंच कहां,
जरा उन किताबों में लिखी कविताओं का मोल हम से तो पूछिए,
जिन्हें बेच दिया जाता है 10 रूपय किलो रद्दी के भावों में,
इन कविताओं के एक एक शब्द में छिपे होते हैं हमारे दिल के भाव जहां,
कभी भेल में, कभी चाट की प्याली में,
कभी कूड़ादान में तो कभी हजारों पैरों के नीचे कुचली मिलती हैं हमारी कविताएं यहां।
एक गायक के गायन पर लाखों तालियां बजती हैं,
लेकिन जिस कवि ने ये पंक्तियां लिखी है,
क्यों उस कवि के लिए कभी एक भी ताली नहीं बजती हैं।
अगर फ़िल्म सुपर हिट हुई तो कलाकार को लाखों शाबाशियां मिलती हैं,
क्या कभी उस फ़िल्म की कहानी को लिखने वाले कवियों को एक भी शाबाशी मिलती है,
फ़िल्म की कहानी में लिखे गए संवादों(Dialogues) में
थोड़ी सी भी गलती हो जाए तो गालियां उन writers को पड़ती है,
क्या कभी एक भी गाली उन कलाकारों को मिलती है।
नहीं... ना...,
क्यों सिर्फ शाबाशी के वक्त कलाकार और गालियों के वक्त एक कलमकार।