बादलों और जिंदगी की लुकाछिपी
बादलों और जिंदगी की लुकाछिपी
क्या बात है आज तो आसमान बदली से भरा हुआ है।
आज तो बिना मौसम के ही बादल बहुत गरज रहे हैं ।
क्या बात है मौसम बिना कारण ही वातावरण बादल छाया हो रहा है।
कितने बादल गरज रहे हैं।
ऐसा लग रहा है तूफान आएगा और अभी यह बरस पड़ेंगे।
अरे यह क्या हो गया अभी तो इतने बादल गरज रहे थे अभी सब कहां गायब हो गए ।
अभी तो लग रहा था तूफान आएगा।
और अभी तो यह आसमान साफ हो गया ।
मतलब गरजने वाले बादल बरस नहीं रहे।
जरूरी नहीं है कि हर गरजने वाला बादल बरसता रहे।
इसीलिए तो यह कहावत बनी है जो गरजते हैं वह बरसते नहीं।
क्यों सही है ना।
यह लुकाछिपी का खेल ही तो है।
तो चलो बच्चों इन बादलों से डरने की जरूरत नहीं है ।
आओ लुकाछिपी खेलते हैं।
लुका छुपी खेलें आओ, लुका छुपी खेलें आओ,
ओ पप्पू और टप्पू ,ओ कम्मो ओ शन्नो ,
ओ कम्मु ओ शक्कूमिलकर मौज मनाएं।
लुका छुपी खेलें आओ। लुकाछिपी खेलें आओ ओ ओ थप्पो यह चीटिंग है, यह चीटिंग है,
यह तुम्हारी मिलीभगत है
यह तो लुकाछिपी पर बचपन की बातें हैं।
बाकी जिंदगी अपने आप में भी एक लुका छुपी का खेल ही तो है ।
कभी खुशियां छुप जाती है,
कभी दुख छुप जाते हैं।
जिंदगी भी एक लुकाछिपी का खेल है।
इसी तरह बादल और बरसात, सूरज।
बरसात का मौसम है, बादल हुए, मगर बरसात नहीं आई है छिप गई ,और सूरज निकल आया।
वापस सूरज बादलों में छुप गया ।
और बादल आ गए। जोर से बरसात आने लगी यह सब लुका छुपी का खेल है ।
बचपन का खेल और जिंदगी की वास्तविकता दोनों एक ही है।
