तुमको मैंने कब छोड़ा था
तुमको मैंने कब छोड़ा था
तुमको मैंने कब छोड़ा था
जिससे तुम नाराज हुई
मैं थका कब उस मंजिल में
जिससे तुम हैरान हुई
तुमको मैंने कब छोड़ा था
मैं मधुवन का कान्हा सा था
तुमने ना जाने क्या समझ लिया
मैं शंकर सा था नीलकंठ,
फिर भी तुमने क्यों इंद्र कहा ?
तुमको मैंने कब छोड़ा था
जब गरजा था वह मेघ बला
तब मैंने सारा प्रकोप सहा
जब हुआ अंधेरा आंगन तेरा
तब खुद जलकर मैं दीया बना
तुमको मैंने कब छोड़ा था
मैं कच्ची सड़क का मिट्टी सा
ना जाने कितनों ने मथा
पर यह भी सच है ना कि
तेरे खातिर ही मैंने कभी,
ठुकराया था पक्का होना
तुमको मैंने कब छोड़ा था।