तुम पर मेरा क्या अधिकार
तुम पर मेरा क्या अधिकार
मैं तट पर की हूँ उड़ती रेत
तुम नदिया की बहती धार
तुम पर मेरा क्या अधिकार
तुम पुष्प सुकोमल उपवन के
मैं कुम्हलाई सूखी डार
तुम पर मेरा क्या अधिकार
तुम हवा का इक बहता झोंका
मैं नौका की इक पतवार
तुम पर मेरा क्या अधिकार
तुम स्वप्न सलोने सुन्दर हो
मैं यथार्थ की निर्मम सार
तुम पर मेरा क्या अधिकार
तुम ठहरे इक रमते जोगी
मेरा छोटा-सा संसार
तुम पर मेरा क्या अधिकार
तुम ऊँचे आज़ाद गगन
मैं बंधन में लिपटी भार
तुम पर मेरा क्या अधिकार
तुम राग अनंत अगोचर हो
मैं वीणा की टूटी तार
तुम पर मेरा क्या अधिकार
इस ओर खड़ी हूँ व्याकुल मैं
तुम नदिया के उस पार
तुम पर मेरा क्या अधिकार
इस आस-निरास के झूले पर
मैं बैठी पंख-पसार
तुम पर मेरा क्या अधिकार