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Preshit Gajbhiye

Abstract Romance Others

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Preshit Gajbhiye

Abstract Romance Others

तुम भी मेरी तरह लगते हो

तुम भी मेरी तरह लगते हो

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इतनी खामोशी से बैठे रहते हो,

देखने पर किसी से खफ़ा लगते हो ..

दिन भर सोच में पड़े रहते हो जिसके ख्यालों में,

कभी सोचा भी है के तुम उसके क्या लगते हो .. 


कोई रिश्ता भी है तुम्हारा उसके साथ,

या बस अपने ही मन में उसके खुदा लगते हो ..

अरसों-बरसों तक का इंतजार करते है लोग,

तुम तो चंद दूरियों का मसला लगते हो ..


पीछे मुड़ कर देखना भी गवारा नहीं तुम्हें,

भूल बैठे हो घर लौटने का पता लगते हो ..

खालीपन बताता है तुम्हारा 

खींच लिया हो सारा पानी तुम में से,

सुखा हो जैसे कोई कुआं लगते हो ..


कुछ तो अच्छे पल गुज़रे होंगे उसके साथ,

यहीं सोच कर मुस्कुरा लो 

मायूसी चेहरे पर रहते 

'मोहब्बत 'नहीं,

कर बैठे हो जैसे कोई गुनाह लगते हो ..

यूं कर के अकेला खुद को जहान से,

अपनी ही बेरुखी की वजह लगते हो ..


मैं कौन होता हूँ तुमसे ये सब कहने वाला,

मगर कभी मैं भी गुजरा था इसी दौर से दोस्त 

आज तुम्हें देख कर तुम भी मेरी तरह लगते हो ...



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