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Preshit Gajbhiye

Abstract Romance

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Preshit Gajbhiye

Abstract Romance

वक्त लगता है...

वक्त लगता है...

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मोहब्बत तो बस हो जाती है ,

इज़हार करने में वक्त लगता है ..


खुद को बदलने की कोशिशें जारी रहती है ,

नई राहों पर चलने में वक्त लगता है ..


बहुत सी बातें दोनों की मिलती तो है ,

एक दूसरे को समझने में वक्त लगता है ..


इंतजार रहता के कानों में 

सुबह की सबसे पहली उसकी आवाज़ पड़े,

मगर इस चांद को भी ढलने में वक्त लगता है 


और फिर होश आता है किसी एक को ,

कहता है, के वो उसके लायक नहीं ..

आखिर बैठाते ही क्यूं हो उसे अपनी पलकों पर ,

जब मोहब्बत ही तुम्हारी 'जायज़' नहीं ?


तुम बगैर सोचे निकल जाते हो नए सफर पर ,

उसे आगे बढ़ने में वक्त लगता है ..


कैसे सेंक लें आंखें' किसी गैर को देख कर अब वो,

गीली लकड़ियों को जलने में वक्त लगता है ..


विरसे में मिले अपनों से 'ज़ख्म'

किसी मरहम से नहीं जाते ,

उन्हें भरने में वक्त लगता है ..


बात शराब की होती तो कोई बात ही नहीं होती ,

नशा मोहब्बत का है, उतरने में वक्त लगता है ...


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