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Preshit Gajbhiye

Romance Fantasy

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Preshit Gajbhiye

Romance Fantasy

एक ख्वाब देखा है मैंने...

एक ख्वाब देखा है मैंने...

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एक ख्वाब देखा है मैंने,

उसे मुक्कमल करोंगी क्या ..


एक पहेली है जो सुलझती नही मुझसे,

मुझे सीने से लगा कर हल करोंगी क्या ..

हम बैठे रहे आज में गीले शिकवे मिटाते हुए,

सुबह जब हो तो मकसूद कल करोंगी क्या ..


एक ख्वाब देखा है मैंने,

उसे मुक्कमल करोंगी क्या ..


मैं कोशिशें करता रहूं तुम्हे मोहब्बत सिखाने की, 

तुम भी मेरी नकल करोंगी क्या ..

यूं तो आता नहीं मुझे लिखना,

मेरी टूटी पंक्तियों को ग़ज़ल करोंगी क्या ..


एक ख्वाब देखा है मैंने,

उसे मुक्कमल करोंगी क्या ..


भटकने के डर से जो निकला ही नहीं कभी घर से,

दिल को मेरे इश्क़ में तुम्हारे पागल करोंगी क्या

..

वैसे तो ज़िंदगी हर मोड़ पर इंतहा लेती आ रही हैं,

तुम मेरे सब्र को मीठा फल करोंगी क्या ..


एक ख्वाब देखा है मैंने,

उसे मुक्कमल करोंगी क्या ...


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