मेरे किरदार से मोहब्बत ...
मेरे किरदार से मोहब्बत ...
वाक़िफ हूं मै,
अपनी जिंदगी की हर हार से ,
याद है मुझे ज़ख्म जो मिले
मुझे अपनो के वार से ,
झुका हूं कहीं तो कहीं रोया हूं,
खुदके है आंसू मेरे,
नहीं लाया मै कोई बाज़ार से...
कई बार लौट आया हूं सहम के घर
किसी अपनों के दरबार से
बेवकूफ भी बन गया हूं उससे
जिसे दिल का मालिक बनाया था
"किरायेदार" से,
ठोकर भी खाई है,नकारा भी गया हूं,
सर भी पटका है मैंने दीवार से ...
फिर भी मोहब्बत है मुझे,
मेरे अपने किरदार से ।
