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Bhavna Thaker

Romance

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Bhavna Thaker

Romance

तुम और मैं

तुम और मैं

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तुम और मैं नदी के दो किनारों

से मिलन मुमकिन कहाँ,

पर

बीच में जो बह रहा वो इश्क

है शायद.!


बोल तुम्हारे आयात से, आरती से

अल्फ़ाज़ है मेरे इज़हार की

गुंजाईश नहीं 

पर मौन कुछ गा रहा है वो प्यार

है शायद.!


कल कल बहती कालिंदी पर

छाया पड़ी कदंब की,

तुम आग मैं दरिया नामुमकिन

है बुझना तिश्नगी तुम्हारी,

पर साँसों में महकती गुलकंदी

गुब्बार सी प्रीत है शायद.!


सपनों की गलियों में कदमों

की आहट

उफ्फ कदमों में मृगजली सैलाब

तो समझे,

पर 

दिल में जो बस रहा है गाँव कोई

प्यारा मोहब्बत का ठहरा मुकाम

है शायद।



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