टूटती अर्थव्यवस्था
टूटती अर्थव्यवस्था
टूटती अर्थव्यवस्था ने आज
देश की कमर तोड़ दी
चरमरा गई रीढ़ बोझा उठाते उठाते
कलाई मरोड़ दी
बनना था जिसे देश की
आन बान शान
भूख से बौखला अपराधी बन गया
भटक गया राह से धरती का लाल
आंतकवादी बन गया
कही बेरोजगारी तो कहीं भुखमरी है
कही दंगा तो कहीं आगजनी है
कर्ज और महंगाई ने परिवारों को
निगल लिया
पेट्रोल , डीजल आसमान में
उड़ते नजर आए ,
फल और सब्जियां सोने के
भाव खरीदी , बेची जाएं
कालाबाजारी , घूसखोरी ने देश को
खोखला कर दिया
खा गए जनता के खून पसीने की
कमाई चुनिंदा पूंजिखोर
कुछ सफेद पोशों ने जात पात
के नाम पर भारत माँ का लहूँ बहाया है
कब तक आम आदमी समेटता रहेगा
बिखरे घरोंदो को
रों - रों कर जोड़ता रहेगा टूटकर
बिखरे सिक्कों को ।।