प्रीत की रीत
प्रीत की रीत
त्यौहार हैं ये भाई
बहन की प्रीत का
जन्मो से जन्मो तक
चलने वाली रीत का
रेशम के नाजुक धागों में
बंधता हैं प्रेम और विश्वास
ना कोई लोभ लालच ना कोई
महंगे तोहफों की आस
जन्म से लेकर मरण तक
जो साथ रहें मेरे
याद आये बचपन के दिन
संग बिताएं तेरे
सुन भैया हर मुश्किल से
तू ही मुझे बचाएं
एक पुकार पर मेरी सब
छोड़ दौड़ा चला आये
राह निहारूँ तेरे आने की
बांधूँ प्यार तेरी कलाई पर
रोली , चावल से तिलक करूँ
वारी जाऊँ अपने भाई पर
थाल सजा ,सज संवर बैठी हूं
देहरी पर तेरे इंतजार में
जो तुझे पसंद सब बनाया
तुझसे बढ़कर कौन संसार में
एक ही बगिया के हम फूल
एक ही आँगन में पले बढ़े
एक - दूजे से बंधी जीवन डोर
एक - दूजे का अक्ष लगे
मेरे भैया तुझसे ही ये जीवन
तू ही मेरा अभिमान
कुछ भी कर गुजरने को तैयार
देखने को मेरी एक मुस्कान ।।