नारी तेरे रूप अनेक
नारी तेरे रूप अनेक
कहते है नारी नरक का द्वार होती हैं
चक्कर मे नैया फंसी मझधार होती हैं
स्त्री को क्यों दोष देते हो दोष तुम्हारी
नजरों का है जो वासना से भरी पड़ी
जग में होते है नारी के रूप अनेक
जिस रूप में चाहों उसमे देख
माँ बन नौ महीने कोख में रख
प्रसव पीड़ा सहकर मौत से लड़
तुम्हें इस संसार में लेकर आती हैं
माँ बिना ना तुम होते ना हम ना सृष्टि
बहन बन संग बचपन बिताती
खाना, खिलौने, पेंसिल, किताबें बांटती
घर, स्कूल तुम्हारे हिस्से का काम, डांट सब खाती,
कलाई पर राखी बांध अटूट बंधन निभाती
पत्नी बन घर द्वार छोड़ संग आती
चुटकी सिंदूर में सब न्यौछावर कर जाती
तिनका तिनका जोड़ प्यार
भरा संसार सजाती
अंगना नन्हें मुन्हें फूल खिला
जीवन बगिया महकाती
बेटी बन अपनी हँसी से तुझे हँसाती
चीं चीं करती चिड़ियाँ सी चहचहाती
खुद से ज्यादा तेरा ध्यान रखती
जताती बेइंतहा प्यार कभी डांट पिलाती
कितने अनूठे कितने प्यारे
नारी के रूप ये सारे
हर रूप में आकर तेरा जीवन सवांरे
पाप समन्दर फंसी तेरी नैया पार उतारे।।