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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Tragedy Classics Inspirational

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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Tragedy Classics Inspirational

टूट गये श्री राम

टूट गये श्री राम

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राज-धर्म के अनुपालन में, 

अनुशासन के,प्रतिपादन में,

मर्यादा के संस्थापन में, 

टूट गए श्री राम ।।

स्वयं में टूट गए श्री राम....।


देखी सबने भरत प्रतीक्षा,      

सीता जी की अग्नि परीक्षा।

लव-कुश की,अपने ही कुल से 

संघर्षों की कठिन समीक्षा।

किसने देखा इस हलचल में, 

दुविधा के जल की कलकल में..

मिट्टी के कच्चे घट जैसा,

फूट गए श्री राम... ।।

स्वयं में टूट गए श्री राम....।


दशरथ के वचनों की खातिर ।

धरती पर अपनों की खातिर।

निकल पड़े जो धर्म बचाने,

पीड़ित, संत जनों की खातिर ।

दैहिक, भौतिक सुख ठुकराकर, 

मानवीय आदर्श दिखाकर।

सुर नर मुनि का हृदय सहज ही,

लूट गए श्री राम..।

स्वयं में टूट गये श्रीराम....।।


रामायण सा चित्र न कोई।

पुत्र सहोदर मित्र न कोई।

पुरुषोत्तम जैसा मर्यादित,

पावन वृहद चरित्र न कोई।

संयम, त्याग, प्रतिष्ठा वाले, 

कर्म योग में निष्ठा वाले....

इस जग के मानस से कैसे,

छूट गए श्री राम..।।

स्वयं में टूट गए श्री राम....।


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