ट्रैवल ( यात्रा)
ट्रैवल ( यात्रा)
मानव जीवन है एक वरदान जो मिलता सौभाग्य से सभी को ,
यात्रा कर के 8400000 योनियों की नसीब होता ये खुशनसीबों को ।
असल में तो हमारी यात्रा वहीं से आरंभ हो जाती है ,
गर्भ में माँ के जब एक नन्ही सी जान प्रवेश कर जाती है।
9 महीने की यह यात्रा एक नये जीवन का आगाज़ कर जाती है,
नये आयाम, नयी योजनाओं, नये आविष्कारों की संभावना संग अपने लाती है।
जीवन ले के धरती पर, सपनों को पूरा करने की लग जाती होड़,
आरंभ हो जाता संघर्षों के दौर का , व्यापी होतीं नयी चुनौतियाँ हर मोड़।
यात्रा बस की हो या रेलगाड़ी की या फिर हो हवाई जहाज वाली,
जीवन यात्रा के आगे सब बहुत छोटी, नामालूम नज़र आतीं।
यात्रा चाहे कोई भी हो, कुछ पल में समाप्त हो ही जाती है,
चलना ही जीवन है, रुक जाना है मौत का नाम तभी तो
एक यात्रा दूसरी का आगाज़ कर के खुद मौन हों जाती है।
कभी संकीर्ण तो कभी विस्तृत राहों से गुज़रती है जिंदगी ,
सभी पे चल के कुछ पल उनसे बिछड़ जाती भले ही
पर किसी मोड़ पे ना रुकती ना थकती ये कभी।
लकीरों का लेखा- जोखा करता इसका मार्गदर्शन ,
कौन राजा बनेगा, बनेगा रंक कौन, हर किसी के मन में उठता ये प्रश्न ।
जैसे घड़ी चलती सुई के सौजन्य से , ज़िन्दगी भी साँसों की है अनुयायी ,
सही गलत ना होता कोई भी पल, सबके कर्मों की होती कार्यवाही।
कर्मों का विश्लेषण तय करता कौन दंड का और कौन ईनाम का भागीदार ,
सुकर्मों से मिल जाता मोक्ष पर कुकर्म पहुंचा देते नर्क के द्वार।
सिद्ध करना हो जीवन तो ईश्वर का नाम लेते रहना बारबार ,
ये जीवन तो है बस एक यात्रा जो सुहावनी बन जायेगी इस प्रकार।