तथाकथित इंसान
तथाकथित इंसान


पाकर भूल जाते
यहां के सारे
तथाकथित इंसान,
मतलबी दुनिया
परवा ना किसी का
सौ में नव्वे बेईमान !!
निर्लज्ज है लोग
लोभ का है भूख
फिर भी है उन्हें अभिमान,
कहते रहते हैं
यहां के जनता
धन से ना कोई मूल्यवान !!
रिश्तों में बंद कर
काहे को होता तू
आज इतना परेशान,
समय बदलता
रहता है जनाब
चेहरा ना कभी होता पहचान ||