गिद्धों की डेरा
गिद्धों की डेरा
आज की सोच यही
जो जीता राजा वही,
काहे को करे फिकर,
कोई अपना नहीं ।।
जितना पारो उतना मारो
धन कैसे भी आए तिजोरी भरो,
मरने वालों को मरने दो
सपने सारे साकार करो ।।
हर जगह जहां धंधा है
धंधे में कोई ना सगा है,
पैसा का भूत सिर पर नाचे
पाने के लिए दगा भी सही है ।।
चावल में कंकर, सब्जी में जहर
चारों तरफ मिलावटी व्यापार,
तुरंत अमीर होने के चक्कर
बढ़ रहा है काला बाजार ।।
चाहे मरे इंसान चाहे जानवर
मूकदर्शक होता है हर सरकार,
बाबू के जेब जब नोटों से भरा
दब गए सारे मानव अधिकार ।।
मुखौटा धारी यह बदलते हैं चेहरा
पहचान ना आएंगे काले या गोरा,
संभल के जरा तू सजग रहना
मुर्दों की बस्ती में गिद्धों की है डेरा ।।