नजरिया
नजरिया
सागर में नदी है
आती नहीं कभी किसी को नजर,
चेहरे के पीछे चेहरा भी होता
पता नहीं चले उसके खबर।।
कस्तूरी हिरण बेचैन होकर
भागे इधर से उधर,
धैर्य पूर्वक करें नहीं कभी
अपने कर्म निरंतर।।
दूसरों की रचना चोरी करें
खुद की प्रतिभा भूलकर,
ज्ञान की दीपक बुझ चुकी है
कामयाबी के चक्कर।।
बदल चुकी है नजरिया
चाहे गांव हो या शहर,
मुफ्त की खाना भारी पसंद
भले क्यों ना हो जहर ?
कीर्तिवान है वह इंसान
जो बाधा को किया पार,
सुनार की मार ना पड़े तो
कैसे बनेंगे अलंकार।।