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Dr Rajmati Pokharna surana

Tragedy

4  

Dr Rajmati Pokharna surana

Tragedy

तपती धूप में मजदूरन

तपती धूप में मजदूरन

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जून की भयंकर गर्मी में,

पत्थर तोड़ रही थी नारी,

चेहरे पर ना कोई शिकन,

दो जून की रोटी के लिए,

कर रही थी वो मेहनत।


 मौसम भी था काफी उमस भरा,

पसीने की बूंदों से नहा रही थी ,

साड़ी के छोर से बूंदों को हटाते हुए,

छैनी हाथ में लिये तोड़ रही वो पत्थर,

चेहरे पर शान्ति नही थी कोई भ्रान्ति। 


पल्लू से कभी सिर को ढककर,

तपती रेत पर नंगे पाँव निकल पड़ती,

बच्चे की किलकारियां सुन मजदूरन,

मंद मंद मुस्करा देती फिर काम पर लग जाती,

गृहस्थी की गाड़ी को प्यार से वो चलाती।

थक जाती काम करते करते तब वो,

पेड़ की ठंडी छाया में जा थोड़ा सुस्ताती,

ठंडे पानी के छींटे चेहरे पर डालती ,

ठंडा पानी पीकर वो खुद की प्यास बुझाती,

अपनी नन्ही परी को धीरे-धीरे पानी पिलाती। 


चलते जब गर्म हवाओं के झोंके,

लू की लपटों से जब मन उसका दहलता,

पानी की शीतलता मन को अतृप्त करती,

कुल्फी वाला लारी लेकर जब उसके पास से निकलता,

ठंडी ठंडी बर्फ़ की कुल्फी खाने को तब मन तरसता। 


सोचती वो आज खा लेती हूँ एक कुल्फी,

तभी याद आती उसे अपने बच्चों की,

जिन्हें छोड़ आई थी सुबह काम पर आते हुए,

एक छोटा सा,प्यारा सा वादा जो करके आई थी,

आज पूरे पैसे मिलें तो .......कुल्फी तुम्हारी पक्की। ।



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