फूलों से खुशबू चुरा के लाओ
फूलों से खुशबू चुरा के लाओ
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शब्दों के सौदागर अब तो तुम होश में आओ,
फैल रही आतंक की ज्वाला हो सके तो उसे बुझाओ।
वतन जल रहा बलात्कार, झूठ, फरेब की अग्नि से,
एकता का नाद गुनगुना मेरी वादियों को महकाओ।
आंधियों ने घेरा है इस कदर सियासत को मुर्दा बना डाला,
मुर्दा दिलों को जाग्रत कर नव प्राण की ज्योति जलाओ।
शब्दों की गंगा का बहता प्रवाह उस में भावों को भर,
प्रेम प्यार अपनत्व की झर झर झर गंगा को बहाओ।
बसंत तुम हर साल आते हो प्रेम रस की बूंदों के संग,
खुशहाली के लिए बहारों फूलों से खुशबू चूरा के लाओ। ।