तन्हाई के इस बंजर ने
तन्हाई के इस बंजर ने
आँखों के सागर न देखे
आंशु की नदिया न देखी
हर मौसम में जो बरसी है
तुमने वो पलके न देखी
बादल नभ में हमने देखे पर
नभ से गिरती बूँद न देखी
तन्हाई के इस बंजर ने
सावन की रिमझिम न देखी !
तुमको देखा तुमको सोचा
और तुमको ख्वाबो में पाया
तुमको है माँगा रब से
जब भी सजदे में सर झुकाया
पर इस भीगे मौसम में
कैसे सजदा कर भी पाऊं मै
है जब भी है ये गिरती पलके
तेरी इक सूरत ही देखी !
सोचा इस सावन में बन घन
तेरी अलके मुझ पर छायेंगी
देख करीब तुझको तब हमदम
प्यासी आँखे भी भर आएँगी
पर झंझावत तूफानों में
कैसे सावन घुमड़कर चला गया
सावन में भी बरसे न बादल
मैंने ऐसी बरसात न देखी !
तन्हाई के इस बंजर ने...
