अंतसउज्जवल में अब भी है
अंतसउज्जवल में अब भी है
अंतसउज्जवल में अब भी है
निर्मल छवि कुछ वैसी ही
और निःश्वासों में अब भी है
खुशबू परिमल जैसी ही !!
कुछ दीप प्रकाशित है मन में
कुछ दीप आलोकित है पथ में
स्मृति समेकित इस उर में
खुशियाँ झरती है अश्को में
पर अंतस उल्लासित अब भी है
और स्पंदन गति कुछ वैसी ही..!!
और निःश्वासों में अब भी है
खुशबू परिमल जैसी ही !!
प्रेम के धागे बंधे हुए है
मोह के बंधन फंसे हुए है
अनुराग भरे इस जीवन में
बिछडन की सिहरन चुभती है
पर रोम रोम पुलकित अब भी है
और है मिलन की आस कुछ वैसी ही!
और निःश्वासों में अब भी है
खुशबू परिमल जैसी ही !!
सुरमय शब्दों की भाषा से
मानस प्रतिक्षण झंकृत है
विरह व्यथा की पीड़ा से
मन थोडा उद्वेलित है
पर उर तो अनुनादित अब भी है
और श्रवण उत्कंठा कुछ वैसी ही !
और निःश्वासों में अब भी है
खुशबू परिमल जैसी ही !