और निःश्वासों में अब भी है खुशबू परिमल जैसी ही ! और निःश्वासों में अब भी है खुशबू परिमल जैसी ही !
सुबह की मंद हवा, मेरे वातायन से आकर, जब कपोलों को थपथपाती है। सुबह की मंद हवा, मेरे वातायन से आकर, जब कपोलों को थपथपाती है।
तुम हंसो जैसे कि संध्या का सितारा तुम हंसो जैसे ऊषा का पर्व प्यारा! श्री शिवनारायण जौहरी विमल २४/डी... तुम हंसो जैसे कि संध्या का सितारा तुम हंसो जैसे ऊषा का पर्व प्यारा! श्री शिवनार...
गहराईयों में मत घुसो तुम मन का कहना मानो! गहराईयों में मत घुसो तुम मन का कहना मानो!