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तलाश

तलाश

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आठ पहर होते दिन में, एक पहर ना खुद के साथ तू,

दुनिया के साथ हर वक़्त है, खुद को न करे तलाश क्यूँ ?


सुबह सवेरे फ़ोन उठाके टुकुर टुकुर तू करता है,

दूजों की तस्वीरे और कामयाबी उनकी जीता है।

तू खुद को प्रातः उठके दर्पण में ज़रा निहार तो,

दुनिया के साथ हर वक़्त है, खुद को न करे तलाश क्यूँ ?


ये बेड़िया जो खुद के वजूद पे तूने बांधी है,

मैं इतना ही क़ाबिल हूँ ये ग़ैरत तूने ठानी है।

दूजों की पहचान में अपनी जान ढूंढता है यूँ,

दुनिया के साथ हर वक़्त है, खुद को न करे तलाश क्यूँ ?


खाली घट से बुझा न सकता तू प्यासे की प्यास को,

और न खुशियां दे सकता खुद को रख के निराश तू।

उस आंनद के घड़े को अपने अंदर सँवार तो,

दुनिया के साथ हर वक़्त है, खुद को न करे तलाश क्यूँ ?


आज तू जिसके साथ न कल तू होगा उसके हाथ में,

ये दुनिया का है दस्तूर, तू इसका सत्य जान ले।

परछाई ने जब न छोड़ा, तू छोड़े खुद का साथ क्यूँ ?

दुनिया के साथ बहुत हुआ, खुद को जा कर तलाश तू !


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