तलाश
तलाश
आज न जाने क्यों मुझे कविता लिखने के लिए विषय ही नहीं मिल रहे है...
इस नीले आसमाँ और गहरे समंदर को केंद्र में रखकर भी मैं कई कविताएँ लिख चुकी हूँ...
उन ऊँचे और कभी हरे भरे तो कभी बर्फ़ से ढँके पहाडों और कल कल बहती इन गुस्ताख़ नदियों पर भी मैं कविता लिख चुकी हूँ...
इस चमकते चाँद और टिमटिमाते तारों पर भी मैं कुछ कविताएँ ऑलरेडी लिख चुकी हूँ...
इन गुलाब, मधुमालती और रंगबिरंगी बोगनवेलिया पर तो न जाने कितनी कविताएँ पब्लिश कर चुकी हूँ....
भरी गर्मी में सूरज से बेख़ौफ़ नज़रे मिलाने की जुर्रत करते गुलमोहर और झूमर की मानिंद झूलते अमलतास के पीले फूलों पर भी मैं कविताएँ कर चुकी हूँ...
इश्क़, मोहब्बत, प्यार और जुदाई पर तो बाकी कवियों की तरह मैंने भी बहुत सी कविताएँ लिख मारी है...
किताबों में रखे हुए सूखे गुलाब और उनकी भीनी भीनी यादों पर भी मेरी कविताएँ है...
बहकी बहकी और कभी महकी उन सर्र से बहती तो कभी ठिठकती हवाओं पर भी मैंने कविता लिखी है...
झरोखों से झाँकते धूप के चंद टुकड़ों के साथ मई की जर्द दोपहरी में आग उगलते सूरज पर भी मैंने कुछ कविताएँ लिखी है....
औरतों की सुंदरता और गृहस्थी के साथ ऑफिस में होनेवाली उनकी खींचतान पर भी कई कविताएँ लिखी हूँ....
मैं कोई आम कवि नही हूँ जो भूख, गरीबी, बेरोजगारी या महंगाई जैसे बोरियत वाले मसलों पर उल्टी पुल्टी कविताएँ लिखूँ....
और न ही मुझे उन जलती झुग्गियों, दो निवालें और अदद छत के लिए भटकते लोग और वहाँ राख होती इन्सानियत पर भी कोई कविता लिखनी है....
मुझे कविता के लिए कुछ नये और अनूठे विषयों की तलाश में जल्दी ही घर से बाहर निकलना होगा...