तिल तेरा कैसे क़ातिल नहीं है
तिल तेरा कैसे क़ातिल नहीं है
और क्या है जो हासिल नहीं है
बस तेरे बिन ये दिल दिल नहीं है
जबसे देखा है तेरा हुआ है
सीने में अब मेरा दिल नहीं है
नज़रें इसकी नहीं कम बला से
गो ये क़ातिल भी क़ातिल नहीं है
चाक दिल के संभाले हुए है
और कुछ इश्के हासिल नहीं है
ज़िंदगी में जो है बस व
ही है
बस लकीरों में शामिल नहीं है
मंज़िलें तो बहुत देखी हमने
रास्ता कोई हासिल नहीं है
हमने देखा है मरता हुआ दिल
तिल तेरा कैसे क़ातिल नहीं है
रात रानी सी छाई है मुझमें
क्यूँ भला जब तू हासिल नहीं है
बनके ‘दीपक’ जला जा रहा हूँ
चाँद मेरे मुक़ाबिल नहीं है