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Deepak Sharma

Abstract

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Deepak Sharma

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दर्दों का इक मुश्त ठिकाना होता है

दर्दों का इक मुश्त ठिकाना होता है

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प्यार वफ़ा सब दिल में बिठाना होता है। 

दर्दों का इक मुश्त ठिकाना होता है।।


मुस्कानों के पीछे पीछे मत भागो।

अश्क़ों से भी कुछ तो निभाना होता है।।


हौले हौले दिल पलता है सीने  में।

हौले हौले  दर्द  बढ़ाना   होता है।।


और मज़ा देते हैं दिल के दाग़ सभी।

जैसे जैसे रब्त  पुराना   होता है।।


सबको हासिल कहाँ है ये फ़न हंसने का।

हँसता है जो  यार दिवाना  होता है।।


टूटा फूटा दिल है लेकर  जाएँ कहाँ।

खंडहर में कब कोई ठिकाना होता है।।


छत पर बैठे ख़्वाबों से यूँ है निस्बत।

इन ख़्वाबों में उनको आना  होता है।।


हर पंछी को प्यारा अपना घर लगता।

सबका अपना ताना बाना  होता है।।


चाहे दिल को जितना संभालो मुश्किल है।

तुमको तो बस दाग़ लगाना होता है।।


चाहे  जितना  ऊपर उड़ते  हों पंछी।

शाम को लेकिन घर आ जाना होता है।।


नए नए अश’आर सुनाने  को ‘दीपक’।

रोज़ नया इक दर्द  जगाना होता है।।



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