क्या करते हैं...
क्या करते हैं...
ख़ाब तेरे तुझे मालूम है क्या करते हैं
जैसे मरते को भी उम्मीद दिया करते हैं
आइए आप भी आ जाइए ना महफ़िल में
दिलजले आपके आने की दुआ करते हैं
फिरते थे क़समें वफ़ा खाते ज़माने भर में
बेवफ़ाई का जो अंदाज़ रखा करते हैं
चाक जितने हैं गिरेबाँ के वो तो सिल जाते
रूह के ज़ख़्म पर उम्मीदें शिफ़ा करते हैं
तुम जो बेकार समझते हो हमें तो जानो
रोशनी करने को ‘दीपक’ ही जला करते हैं

