सिक्का उछाल देता है
सिक्का उछाल देता है
वफ़ा के नाम पे मुश्किल में डाल देता है।
वो बात बात पे सिक्का उछाल देता है।।
समझ रहे है यहाँ लोग सब मुझे पागल।
जिसे भी देखिये पत्थर उछाल देता है।।
बता के क़िस्से मेरे खुद वो बेवफ़ाओं को।
मेरा नहीं है पर मेरी मिसाल देता है।।
बना के रूप नये रोज़ रोज़ वो दिलबर।
मेरे शे‘रों को हसीं से ख़याल देता है।।
मुझे यूँ देखके अक्सर उदास, नींदों में।
तमाम ख़्वाब वो तेरे ही डाल देता है।।
करे है जब भी परिशां तसव्वुर मेरा।
तो ठहरे पानी में वो कंकर उछाल देता है।।
रहे हैं कुछ तो मरासिम ज़रूर ‘दीपक’ से।
सुकून मुझको जो उसका विसाल देता है।।
