तीन तलाक
तीन तलाक
तलाक, तलाक, तलाक
तीन लफ्ज़ से हुई जिन्दगी ही ब्लॉक
समाज में पुरुषों की यह कैसी मनमानी है
तीन लफ्ज़ में ही बेगम हुई बेगानी है।
उस नारी की व्यथा तो समझो
निकाह कर जिस शौहर पर करती थी गुमाँ
जिसे ता उम्र मान कर चली वो अपना रहनुमा
उसने ही उसके आँचल को किया बदनाम।
अब आगे कैसे बढ़ाए वो
अपनी जिन्दगी का कारवाँ
नारी होना ही उसकी लाचारी है
या वह धर्म के आगे बेचारी है।
जो भी है,
इस शब्द ने नारीत्व का गला घोंटा है
सामाजिक स्तर पर
नारी के साथ हुआ धोखा है।
आओ उखाड़ फेंके
इस राक्षस को हम जड़ से,
और आज़ाद हो जाए
इस कुप्रथा की पकड़ से।